Saturday 2 December 2017

किशोरावस्था की समस्याएं एवं समाधान ******


किशोरावस्था की समस्याएं एवं समाधान ******
किशोरावस्था एक ऐसी संवेदनशील अवधि है जब व्यक्तित्व में बहुत महत्वपूर्ण परिवर्तन आते हैं। वे परिवर्तन इतने आकस्मिक और तीव्र होते हैं कि उनसे कई समस्याओं का जन्म होता है। यघपि किशोर इन परिवर्तनों को अनुभव तो करते हैं पर वे प्राय: इन्हें समझने में असमर्थ होते हैं। अभी तक उनके पास कोई ऐसा स्रोत उपलब्ध नहीं है जिसके माध्यम से वे इन परिवर्तनों के विषय में वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त कर सकें। किन्तु उन्हें इन परिवर्तनों और विकास के बारे में जानकारी चाहिए, इसलिये वे इसके लिए या तो सम-आयु समूह की मदद लेते हैं, या फिर गुमराह करने वाले सस्ते साहित्य पर निर्भर हो जाते हैं। गलत सूचनाएं मिलने के कारण वे अक्सर कई भ्रांतियों का शिकार हो जाते हैं जिससे उनके व्यक्तित्व विकास पर कुप्रभाव पड़ता है।
*किशोरों में सामजिक-सांस्कृतिक मेलजोल के फलस्वरूप कुछ और परिवर्तन भी आते हैं। सामान्यता: समाज किशोरों की भूमिका को निश्चित रूप में परिभाषित नहीं करता। फलस्वरूप किशोर बाल्यावस्था और प्रौढावस्था के मध्य अपने को असमंजस की स्थिति में पाते हैं। उनकी मनौवैज्ञानिक आवश्यकताओं को समाज द्वार महत्व नहीं दिया जाता, इसी कारण उनमें क्रोध, तनाव एवं व्यग्रता की प्रवृतिया उत्पन्न होती हैं। किशोरावस्था में अन्य अवस्थाओं की उपेक्षा उत्तेजना एवं भावनात्मकता अधिक प्रबल होती है।
*शारीरिक, मानसिक और सामाजिक परिपक्वता की प्रक्रिया से गुजरते हुए किशोरों में स्वतंत्र रहने की प्रवृति जाग्रत होती है। जिससे वे अपने आप को प्रौढ़ समाज से दूर रखना प्रारंभ करते हैं।आधुनिक युग का किशोरे अलग रूप से ही अपनी संस्कृति का निर्माण करना चाहता है जिसे उप संस्कृति का नाम दिया जा सकता है। यह उप-संस्कृति धीरे-धीरे समाज में विधमान मूल संस्कृति को प्रभावित करती है।
किशोरावस्था के बच्चो का ध्यान बहुत रखना पड़ता है |उनसे मित्रवत व्यवहार करके|आप स्वयं को उनके स्थान पर रख कर देखो की आपने उस उम्र में क्या किया था फिर आप उनसे उम्मीदे लगाये|दूसरे के बच्चों की खूबियाँ अपने बच्चे में न ढूंढे अपने बच्चे की खूबियों को निखार कर लाये|
बच्चे वो फूल होते है जो की जीवन के बगीचे में सवरतें हैं|फिर वो फूल गुलाब का हो या फिर सूरजमुखी सुंदर तो दोनों दिखते है तो फिर हम अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चो से क्यों करे?
किशोरावस्था एकऐसी अवस्था होती है जहाँ बच्चे न तो छोटे में गिने जाते हैं और न ही बड़े में | हमें सबसे पहले शुरू से अर्थात बचपन से जब बच्चा घुटनों पर चलना सीखता है तब से ही उसकी छोटी छोटी बातों पर ध्यान रखना चाहिए, बच्चा है तो जिद्द करेगा ही किन्तु हमें सयंम से ध्यान रखकर ही उसकी जिद्द को पूरी करनी चाहिए|
क्योकि आदत कि शुरुआत वहीँ से होती है| फिर बच्चे के बड़े होने के साथ उन्हें जीवन के हर सही गलत की पहचान करवानी चाहिए| उन्हें जैसे वो बड़े हों तभी उन्हें अनुशासित जीवन का तरीका बताएं, साथ ही स्वयं भी अनुशासन में रहें|यदि हम स्वयं अपने से बड़ों को जवाब देगे तो बच्चा वही सीखेगा एवम बाद में पलट कर जवाब देगा जो कि हमें अच्छा नहीं लगता और हम शुरू हो जाते है कि बच्चे तो हमारा सुनते ही नहीं|
किशोरावस्था में प्रवेश के पहले ही हमें बच्चों दुनियादारी के बारे में धीरे धीरे बताना चाहिए कि जीवन में क्या गलत होता है|उनका मस्तिष्क विकार होने से पूर्व ही हमें उनके मस्तिष्क का विकास करना चाहिए|यदि उनके मस्तिष्क में सकारात्मक सोच शुरू से बैठ गयी तो उनका जीवन दूसरों को भी रौशनी देगा|हमें उनकी भावनाओं को समझना चाहिए|किसी भी चीज़ का निवारण दंड नहीं होता इसे हमेशा ध्यान रखना चहिये|ये किशोरावस्था नदी की तेज़ वेग की लहर के समान होती है जिसमें बहुत सयंम के साथ तैरना पड़ता है|
अंतमें .... बढ़ते बच्चों की जिम्मेदारी हम सभी की है जिसमें परिवार,विद्यालय,समाज,सभी जम्मेदारी ले तो बच्चे कभी भी अनुशासनहीन नहीं बन सकते|

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